महाराजा डालदेव राजभर
राय बरेली के राजभर राजा डालदेव
राजा डालदेव का राज्य डलमऊ में था ये चार भाई थे, डालदेव, बालदेव और ककोरन और राजा भारवों । राजा डालदेव ने अपना राज्य चारों भाइयों में बांटकर एक शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना की थी। इन तीनों का राज्य गंगा नदी तथा सई नदी के मध्य पूर्व में आरख ग्राम से लेकर पश्चिम में खीरों तक था। राजा डालदेव भर का किला लगभग 12 बीघे के क्षेत्र में था। इस किले के अंदर सैनिक छावनी थी। किला गंगा किनारे काफ़ी ऊंचाई पर था किले के चारों ओर 30 मीटर ऊंचाई पर गहरी खाई थी जिसे गंगा नदी के पवित्र जल से भरा जाता था। यह किला अब टीले के रूप में है। बालदेव का किला सई नदी के किनारे था। राजा बालदेव ने ही राय भरेली नगर की नींव डाली थी जो अब बरेली के रूप में जाना जाता है । इस राजा ने भरौली नाम के किले का निर्माण कराया था। कालांतर में भरौली शब्द बिगड़कर बरैली हो गया था। राजा ककोरन
जगतपुर से 12 किलोमीटर दूर डलमऊ तहसील के अंतर्गत सुदमानपुर में राजा ककोरन का किला था। इनके सबसे छोटे भाई राजा भारवों ने राय बरेली से बीस किलोमीटर पूरब 200 मीटर लम्बा 200 मीटर चौड़ा मट्टी का किला बनवाया था उन्होंने राजभरों की एक बड़ी सेना तैयार की थी। राजा डालदेव और इनके अन्य भाईयों के भर राज्य की खुशहाली और संपन्नता जौनपुर के शासक इब्राहीम शाह शर्की 1402-1440 के साम्राज्य में एक काँटे की तरह थी इब्राहीम शाह ने डालदेव के राज्य पर आक्रमण कर दिया। डालदेव के भाई ककोरन ने सुदमानपुर में इब्राहीम से भीषण संघर्ष किया, लड़ते हुए ककोरन वीरगति को प्राप्त हुए। इसके बाद इब्राहीम डलमऊ के राजा डाल देव भर के ऊपर आक्रमण कर दिया ,ओ बहुत पहले से योजना बना रहा था,लेकिन वो सफल नही हुआ ,,क्योकि उसकी सेना राजा की सशक्त सेना के सामने टिक नही पाती थी,,वो हमेशा से मोके की तालाश मे रहता था,इसी लिऐ उसने राजा के एक बघेल सरदार को लालच देकर उसने अपने तरफ मिला लिया,,उस बघेल सरदार की गद्दारी से पूरा राज्या तहस नहस हो गया,उसने नावाब को बताया हमले का सबसे अच्छा मौका होली के दिन रहेगा,क्योकि उस दिन पूरा राज भराना जश्न मे डूबा रहता है और सेना भी शराब के नशे मे लपरवाह रहती है ,फिर क्या था,उस गद्दार बघेल ने रात को किले के पीछे का दरवाजा खोल दिया, और रात को हमला होने से पूरा प्रशासन हिल गया, उसने बूढो,बच्चो को भी नही बक्शा,धोखे से हुए हमले से सब तहस महस हो गया, राजा की हत्या कर दी गयी और जब वो जालिम राजा की रानियो क तरफ बढा, राजा की दोनो रानियो ने आग मे कूद कर जान दे दी लेकिन अपने उपर दाग नही लगने दिया ,उन राजमाताओ को मेरा प्रणाम,,तब से आज तक सदियों के बाद भी उस ईलाके मे होली नही मनायी जाती। और इसी वजह से आज भी राजभरों के बीच होली मनाये जाने को लेकर एक सामाजिक रोक है।
भारशिव योद्धाओ को नमन
राहुल सिंह राजभर
राजा डालदेव का राज्य डलमऊ में था ये चार भाई थे, डालदेव, बालदेव और ककोरन और राजा भारवों । राजा डालदेव ने अपना राज्य चारों भाइयों में बांटकर एक शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना की थी। इन तीनों का राज्य गंगा नदी तथा सई नदी के मध्य पूर्व में आरख ग्राम से लेकर पश्चिम में खीरों तक था। राजा डालदेव भर का किला लगभग 12 बीघे के क्षेत्र में था। इस किले के अंदर सैनिक छावनी थी। किला गंगा किनारे काफ़ी ऊंचाई पर था किले के चारों ओर 30 मीटर ऊंचाई पर गहरी खाई थी जिसे गंगा नदी के पवित्र जल से भरा जाता था। यह किला अब टीले के रूप में है। बालदेव का किला सई नदी के किनारे था। राजा बालदेव ने ही राय भरेली नगर की नींव डाली थी जो अब बरेली के रूप में जाना जाता है । इस राजा ने भरौली नाम के किले का निर्माण कराया था। कालांतर में भरौली शब्द बिगड़कर बरैली हो गया था। राजा ककोरन
जगतपुर से 12 किलोमीटर दूर डलमऊ तहसील के अंतर्गत सुदमानपुर में राजा ककोरन का किला था। इनके सबसे छोटे भाई राजा भारवों ने राय बरेली से बीस किलोमीटर पूरब 200 मीटर लम्बा 200 मीटर चौड़ा मट्टी का किला बनवाया था उन्होंने राजभरों की एक बड़ी सेना तैयार की थी। राजा डालदेव और इनके अन्य भाईयों के भर राज्य की खुशहाली और संपन्नता जौनपुर के शासक इब्राहीम शाह शर्की 1402-1440 के साम्राज्य में एक काँटे की तरह थी इब्राहीम शाह ने डालदेव के राज्य पर आक्रमण कर दिया। डालदेव के भाई ककोरन ने सुदमानपुर में इब्राहीम से भीषण संघर्ष किया, लड़ते हुए ककोरन वीरगति को प्राप्त हुए। इसके बाद इब्राहीम डलमऊ के राजा डाल देव भर के ऊपर आक्रमण कर दिया ,ओ बहुत पहले से योजना बना रहा था,लेकिन वो सफल नही हुआ ,,क्योकि उसकी सेना राजा की सशक्त सेना के सामने टिक नही पाती थी,,वो हमेशा से मोके की तालाश मे रहता था,इसी लिऐ उसने राजा के एक बघेल सरदार को लालच देकर उसने अपने तरफ मिला लिया,,उस बघेल सरदार की गद्दारी से पूरा राज्या तहस नहस हो गया,उसने नावाब को बताया हमले का सबसे अच्छा मौका होली के दिन रहेगा,क्योकि उस दिन पूरा राज भराना जश्न मे डूबा रहता है और सेना भी शराब के नशे मे लपरवाह रहती है ,फिर क्या था,उस गद्दार बघेल ने रात को किले के पीछे का दरवाजा खोल दिया, और रात को हमला होने से पूरा प्रशासन हिल गया, उसने बूढो,बच्चो को भी नही बक्शा,धोखे से हुए हमले से सब तहस महस हो गया, राजा की हत्या कर दी गयी और जब वो जालिम राजा की रानियो क तरफ बढा, राजा की दोनो रानियो ने आग मे कूद कर जान दे दी लेकिन अपने उपर दाग नही लगने दिया ,उन राजमाताओ को मेरा प्रणाम,,तब से आज तक सदियों के बाद भी उस ईलाके मे होली नही मनायी जाती। और इसी वजह से आज भी राजभरों के बीच होली मनाये जाने को लेकर एक सामाजिक रोक है।
भारशिव योद्धाओ को नमन
राहुल सिंह राजभर
Salo rajbhRao yai sabhi raja pasi the thumara baal
जवाब देंहटाएंThanks
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