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डौंडियाखेड़ा और भर / राजभर साम्राज्य

डौंडियाखेड़ा भर राजाओं की संपत्ति लखनऊ। संत शोभन सरकार के सपने के आधार पर डौंडियाखेड़ा में राजा राव रामबख्श सिंह के किले की खुदाई का मामला इन दिनों समाज व मीडिया की सुर्खियां बना हुआ है। गौरतलब है कि बाबा ने किले में जमीन के नीचे एक हजार टन सोना दबे होने का सपना देखा था। जिसके आधार पर उप्र के उन्नाव जिले में कथित खजाने की खोज में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के दल कड़ी सुरक्षा के बीच डौंडियाखेड़ा में खुदाई का काम कर रहा है। छह दिनों में अब तक कुल 2.17 मीटर खुदाई की जा चुकी है। वहीं इस खजाने को लेकर विभिन्न राजनैतिक दलों, संगठनों और हिन्दू समाज की कई जातियों में राजनीति शुरू हो गयी है। सभी इस किले को पुरखों की धरोहर बताकर अपना अपना अधिकार जताने की कोशिश में लगे हैं। पिछले एक सप्ताह से सुर्खियों में आये डौंडियाखेड़ा के संदर्भ में बार-बार यह प्रचारित किया जा रहा है कि यह किला राजा राव रामबख्श सिंह का है जिन्होंन इस किले का निर्माण करवाया था लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है। प्राचीन पुरावशेष शोध एवं संरक्षण समिति के प्रदेश प्रभारी व पुरातत्वविद भीमसेन भारशिव और भर जाति के लोगों ने इस किले प...

महाराजा बिजली राजभर

महाराजा बिजली राजभर बारहवीं शताब्दी राजभर राजाओं के साम्राज्य के लिए बहुत अशुभ साबित हुई। इसी शताब्दी के अन्तिम वर्षों में अवध के सबसे शक्तिशाली राजभर महाराजा बिजली वीरगति को प्राप्त हुए थे। सन् 1194 ई. में इससे पहले राजा लाखन राजभर भी वीरगति को प्राप्त हुए। महाराजा बिजली राजभर की माता का नाम बिजना था, इसीलिए उन्होंने सर्वप्रथम अपनी माता की स्मृति में बिजनागढ की स्थापना की थी जो कालांतर में बिजनौरगढ़ के नाम से संबोधित किया जाने लगा।बिजली राजभर के कार्य शेत्र में विस्तार हो जाने के कारण बिजनागढ में गढ़ी का समिति स्थान पर्याप्त न होने के कारण बिजली राजभर ने अपने मातहत एक सरदार को बिजनागढ को सौंप दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी पिता की याद में बिजनौर गढ़ से उत्तर तीन किलोमीटर की दूरी पर पिता नटवा के नाम पर नटवागढ़ की स्थापना की।यह किला काफी भव्य और सुरक्षित था। बिजली राजभर की लोकप्रियता बढ़ने लगी और अब तक वह राजा की उपाधि धारण कर चुके थे। नटवागढ़ भी कार्य संचालन की द्रिष्टि से पर्याप्त नहीं था, उसके उत्तर तीन किलोमीटर एक विशाल किले का निर्माण कराया जिसका नाम महाराजा बिजली भर किला पड़ा। जि...

महाराजा सुहेलदेव राजभर

महाराजा सुहेल देव राजभर ग्यारवी सदी के प्रारंभिक काल में भारत में एक घटना घटी जिसके नायक श्रावस्ती सम्राट वीर सुहेलदेव राजभर थे ! राष्ट्रवादियों पर लिखा हुआ कोई भी साहित्य तब तक पूर्ण नहीं कहलाएगा जब तक उसमे राष्ट्रवीर श्रावस्ती सम्राट वीर सुहेलदेव राजभर की वीर गाथा शामिल न हो ! कहानियों के अनुसार वह सुहलदेव, सकर्देव, सुहिर्दाध्वाज राय, सुहृद देव, सुह्रिदिल, सुसज, शहर्देव, सहर्देव, सुहाह्ल्देव, सुहिल्देव और सुहेलदेव जैसे कई नामों से जाने जाते हैं ! श्रावस्ती सम्राट वीर सुहेलदेव राजभर का जन्म बसंत पंचमी सन् १००९ ई. में हुआ था ! इनके पिता का नाम बिहारिमल एवं माता का नाम जयलक्ष्मी था ! सुहेलदेव राजभर के तीन भाई और एक बहन थी बिहारिमल के संतानों का विवरण इस प्रकार है ! १. सुहलदेव २. रुद्र्मल ३. बागमल ४. सहारमल या भूराय्देव तथा पुत्री अंबे देवी ! सुहेलदेव राजभर की शिक्षा-दीक्षा योग्य गुरुजनों के बिच संपन्न हुई ! अपने पिता बिहारिमल एवं राज्य के योग्य युद्ध कौशल विज्ञो की देखरेख में सुहेलदेव राजभ...

महाराजा सातन राजभर

चक्रवर्ती महाराजा सातन देव राजभर जनपद उन्नाव के पुखवरा तहसील और हड़हा क्षेत्र के कई भागों में राजभरों का राज्य था। यद्यपि जिले के केन्द्रीय भाग में बिसेन राजपूत काबिज थे। किन्तु उत्तर पश्चिम क्षेत्र में राजभरों की बाहुबली सत्ता स्थापित थी, और बांगर मऊ उनकी सत्ता का प्रमुख केंद्र था। इसी जिले में मशहूर राजभर शासक महाराजा सातन देव राजभर का किला था जिसके भग्नावशेष आज भी सातन कोट के नाम से विख्यात है। उन्नाव जिले के डौंडियाखेड़ा नामक स्थान पर भी राजभर शासक था। इस शासक को बाद में बैस राजपूतों ने बेदखल किया था। टांडा :- वर्तमान अम्बेडकर नगर जिले की टांडा तहसील में बिड़हर नाम का एक परगना है। इस स्थान पर ग्यारहवीं तथा बारहवीं शताब्दी तक राजभरों का राज्य था। मुस्लिम आक्रमण से यह राजा बेदखल हो गये थे। वे राजभर वहां से उड़ीसा राज्य में चले गए थे। उड़ीसा में उन्हें भुइञा कहा जाता है। भर और भुइञा जाति के लोगों के बारे में सरहेनरी इलियट अंग्रेज ने समानता का अध्ययन किया है। बिड़हर परगने में भर शासकों के बारह किलों के निशान विधमान है। 1:- कोरावां 2:- चांदीपुर 3:- समौर 4:- रूघाई 5:- सैदपुर लखाडीर 7:-...

महाराजा लाखन राजभर

वीर शिरोमणि महाराजा लाखन राजभर लखनऊ लाखन राजभर के नाम से बसाया गया था। आज जिस टीले पर किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज की भव्य इमारत खड़ी है। उसी टीले पर राजा लाखन भर का किला हुआ करता था। लाखन भर का राज्य 10-11 वीं शताब्दी में था। लखनऊ का टीला बताता है कि यह किला डेढ़ किलोमीटर लम्बा तथा उतना ही चौड़ा था। यह किला धरातल से 20 मीटर ऊंचा था। उक्त किले के मुख्य भाग पर किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज स्थापित है। यही स्थान लाखन भर किला के नाम से जाना जाता है। टीले पर ही बड़ा इमाम बाडा़ मेडिकल कॉलेज, मच्छी भवन टीलें वाली मस्जिद तथा आस पास का क्षेत्र है। राजा लाखन भर की पत्नी का नाम लखनावती था। संभवतः कुछ दिनों तक इसीलिए लखनऊ का नाम भी लखनावती चलता था। राजा लाखन ने लखनावती वाटिका का निर्माण कराया था। जिसके पूर्वी किनारे पर नाग मंदिर भी बनवाया था। लाखन राजा नाग उपासक थे। किले के उत्तरी भाग में लाखन कुंड था। उस कुंड के जल का प्रयोग राज परिवार के लोग करते थे। सोलहवीं शताब्दी में लखनऊ पर राज्य कर रहे शेखजादों ने इस कुंड में रंग बिरंगी मछलियों को पाला था इसी कारण उस कुंड का नाम मच्छी कुंड पड़ गया। शेखजादों ने काल...

महाराजा डालदेव राजभर

राय बरेली के राजभर राजा डालदेव राजा डालदेव का राज्य डलमऊ में था ये चार भाई थे, डालदेव, बालदेव और ककोरन और राजा भारवों । राजा डालदेव ने अपना राज्य चारों भाइयों में बांटकर एक शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना की थी। इन तीनों का राज्य गंगा नदी तथा सई नदी के मध्य पूर्व में आरख ग्राम से लेकर पश्चिम में खीरों तक था। राजा डालदेव भर का किला लगभग 12 बीघे के क्षेत्र में था। इस किले के अंदर सैनिक छावनी थी। किला गंगा किनारे काफ़ी ऊंचाई पर था किले के चारों ओर 30 मीटर ऊंचाई पर गहरी खाई थी जिसे गंगा नदी के पवित्र जल से भरा जाता था। यह किला अब टीले के रूप में है। बालदेव का किला सई नदी के किनारे था। राजा बालदेव ने ही राय भरेली नगर की नींव डाली थी जो अब बरेली के रूप में जाना जाता है । इस राजा ने भरौली नाम के किले का निर्माण कराया था। कालांतर में भरौली शब्द बिगड़कर बरैली हो गया था। राजा ककोरन जगतपुर से 12 किलोमीटर दूर डलमऊ तहसील के अंतर्गत सुदमानपुर में राजा ककोरन का किला था। इनके सबसे छोटे भाई राजा भारवों ने राय बरेली से बीस किलोमीटर पूरब 200 मीटर लम्बा 200 मीटर चौड़ा मट्टी का किला बनवाया था उन्होंने रा...